Saturday, January 29, 2011


एक  बराहम्हन  ने  कहा  है  के  ये  साल अच्छा है,

ज़ुल्म की रात बहुत जल्द ढलेगी अब तो,
आग चूल्हों में हर एक रोज़ जलेगी अब तो,
भूख के मारे कोई बच्चा नहीं रोयेगा,
चैन की नींद हर एक शख्स यहाँ सोयेगा,
आंधी नफरत की चलेगी न कही अब के बरस,
प्यार की फ़स्ल उगाएगी ज़मीं अब के बरस,
है यकीं अब न कोई शोर शराबा होगा,
ज़ुल्म होगा न कहीं खून खराबा होगा,
ओस और धूप के सदमे न सहेगा अब कोई,
अब मेरे देश में बेघर न रहेगा कोई,
नए वादों का जो डाला है वो जाल अच्छा है,
रहनुमाओं ने कहा है कि ये साल अच्छा है,
दिल के खुश रखने को ग़ालिब" ये ख़याल अच्छा है.

No comments:

Post a Comment