aasman odh ke soye hain khule maidaan main...apani ye chhat kisi deewar ki mohtaj nahi...........rahat indauri
ashaar
Monday, April 18, 2011
Friday, April 15, 2011
दुनिया सलूक करती है हलवाई की तरह
तुम भी उतारे जाओगे मलाई की तरह,,
माँ बाप मुफलिसों की तरह देखते हैं बस
कद बेटियों के बढ़ते हैं महंगाई की तरह..
हम चाहते हैं रक्खे हमें भी ज़माना याद
ग़ालिब के शेर तुलसी की चौपाई की तरह
..
हमसे हमारी पिछली कहानी न पूछिए
हम खुद उधड़ने लगते हैं तुरपाई की तरह॥
मुनव्वर राना
तुम भी उतारे जाओगे मलाई की तरह,,
माँ बाप मुफलिसों की तरह देखते हैं बस
कद बेटियों के बढ़ते हैं महंगाई की तरह..
हम चाहते हैं रक्खे हमें भी ज़माना याद
ग़ालिब के शेर तुलसी की चौपाई की तरह
..
हमसे हमारी पिछली कहानी न पूछिए
हम खुद उधड़ने लगते हैं तुरपाई की तरह॥
मुनव्वर राना
सर पर सात आकाश ,ज़मी पर सात समंदर बिखरे है..
आँखे छोटी पड़ जाती है इतने मंज़र बिखरे है....
ज़िन्दा रहना खेल नहीं है इस आबाद खराबे में,
वो भी अक्सर टूट गया है,हम भी अक्सर बिखरे है..
इस बस्ती के लोगो से जब बाते कि तो ये जाना,
दुनिया भर को जोड़ने वाले अन्दर अन्दर बिखरे है..
इन आँखों से अपना रिश्ता जाने कैसा रिश्ता है,
नींदे कमरों में जागी है,ख्वाब छतों पर बिखरे है...
राहत इन्दौरी
आँखे छोटी पड़ जाती है इतने मंज़र बिखरे है....
ज़िन्दा रहना खेल नहीं है इस आबाद खराबे में,
वो भी अक्सर टूट गया है,हम भी अक्सर बिखरे है..
इस बस्ती के लोगो से जब बाते कि तो ये जाना,
दुनिया भर को जोड़ने वाले अन्दर अन्दर बिखरे है..
इन आँखों से अपना रिश्ता जाने कैसा रिश्ता है,
नींदे कमरों में जागी है,ख्वाब छतों पर बिखरे है...
राहत इन्दौरी
Tuesday, February 22, 2011
हवा जब तेज़ चलती है तो पत्ते टूट जाते हैं
मुसीबत के दिनों में अच्छे-अच्छे टूट जाते हैं
बहुत मजबूर हैं हम झूठ तो बोला नहीं जाता
अगर सच बोलते हैं हम तो रिश्ते टूट जाते हैं
बहुत मुश्किल सही फिर भी मिज़ाज अपना बदल लो तुम
लचक जिनमें नहीं होती तने वे टूट जाते हैं
भले ही देर से आए मगर वो वक़्त आता है
हक़ीक़त खुल ही जाती है मुखौटे टूट जाते
ये दुनिया तुझसे मिलने का वसीला काट जाती है
ये बिल्ली जाने कब से मेरा रस्ता काट जाती है
पहुँच जाती हैं दुश्मन तक हमारी ख़ुफ़िया बातें भी
बताओ कौन सी कैंची लिफ़ाफ़ा काट जाती है
अजब है आजकल की दोस्ती भी, दोस्ती ऐसी
जहाँ कुछ फ़ायदा देखा तो पत्ता काट जाती है
तेरी वादी से हर इक साल बर्फ़ीली हवा आकर
हमारे साथ गर्मी का महीना काट जाती
दर्द के फूल भी खिलते हैं बिखर जाते हैं
ज़ख़्म कैसे भी हों कुछ रोज़ में भर जाते हैं
रास्ता रोके खड़ी है यही उलझन कब से
कोई पूछे तो कहें क्या कि किधर जाते हैं
छत की कड़ियों से उतरते हैं मिरे ख़्वाब मगर
मेरी दीवारों से टकरा के बिखर जाते हैं
नर्म अल्फ़ाज़, भली बातें, मुहज़्ज़ब[1] लहजे
पहली बारिश ही में ये रंग उतर जाते हैं
ज़ख़्म कैसे भी हों कुछ रोज़ में भर जाते हैं
रास्ता रोके खड़ी है यही उलझन कब से
कोई पूछे तो कहें क्या कि किधर जाते हैं
छत की कड़ियों से उतरते हैं मिरे ख़्वाब मगर
मेरी दीवारों से टकरा के बिखर जाते हैं
नर्म अल्फ़ाज़, भली बातें, मुहज़्ज़ब[1] लहजे
पहली बारिश ही में ये रंग उतर जाते हैं
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