सर पर सात आकाश ,ज़मी पर सात समंदर बिखरे है..
आँखे छोटी पड़ जाती है इतने मंज़र बिखरे है....
ज़िन्दा रहना खेल नहीं है इस आबाद खराबे में,
वो भी अक्सर टूट गया है,हम भी अक्सर बिखरे है..
इस बस्ती के लोगो से जब बाते कि तो ये जाना,
दुनिया भर को जोड़ने वाले अन्दर अन्दर बिखरे है..
इन आँखों से अपना रिश्ता जाने कैसा रिश्ता है,
नींदे कमरों में जागी है,ख्वाब छतों पर बिखरे है...
राहत इन्दौरी
आँखे छोटी पड़ जाती है इतने मंज़र बिखरे है....
ज़िन्दा रहना खेल नहीं है इस आबाद खराबे में,
वो भी अक्सर टूट गया है,हम भी अक्सर बिखरे है..
इस बस्ती के लोगो से जब बाते कि तो ये जाना,
दुनिया भर को जोड़ने वाले अन्दर अन्दर बिखरे है..
इन आँखों से अपना रिश्ता जाने कैसा रिश्ता है,
नींदे कमरों में जागी है,ख्वाब छतों पर बिखरे है...
राहत इन्दौरी
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